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Rich Dad Poor Dad In Hindi

 रिच डैड पुअर डैड हिंदी में Rich Dad Poor Dad In Hindi: Robert T Kiyosaki : Hindi Noval 

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 Rich Dad Poor Dad रॉबर्ट कियोसाकी जी Robert Kiyosaki द्वारा लिखित एक सेल्फ हेल्प व व्यक्तिगत वित्तीय प्रबंधन की पुस्तक है।जैसे कि आप सभी ने Rich Dad Poor Dad की प्रस्तावना में पढ़ा था कि  इस किताब की क्यों जरूरत है और इसके अलावा चूहा दौड़ के बारे में भी पढ़ा था । आज हम सभी इस किताब के प्रथम अध्याय के बारे में पढ़ेंगे -इसे भी पढ़े -रिच डैड पुअर डैड Rich Dad Poor dad

रिच डैड पुअर डैड रोबर्ट टी कियोसाकि के अनुसार (Rich Dad Poor Dad Robert T Kiyosaki ke Anusar)

Robert Kiyosaki कहते है कि मेरे दो डैडी थे Rich Dad  और दूसरे Poor Dad । एक बहुत पढ़े -लिखे थे और समझदार थे। वे पीएचडी थे और उन्होंने अपने चार साल के अंडरग्रेजुएट कार्य को दो साल से भी कम समय में कर लिया था। इसके बाद वे आगे पढ़ने के लिए स्टैनफोर्ड विश्वविधयालय ,विश्वविधियालय ऑफ़ शिकागो तथा नॉर्थवेस्टर्न गए और यह सब उन्होंने पूरी तरह से स्कालरशिप के सहारे ही किया। मेरे दूसरे डैडी आठवीं से आगे नहीं पढ़ थे। 
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दोनों अपने करियर में सफल थे। दोनों ने ज़िंदगी भर कड़ी मेहनत की थी। दोनों ने ही काफी पैसा कमाया था। परन्तु उनमे से एक पूरी ज़िंदगी पैसों के लिए परेशान होता रहा। दूसरा हवाई के सबसे आमिर व्यक्तियों में से एक बन गया। एक मरने पर उसके परिवार और जरूरतमंदों को करोड़ो डॉलर की दौलत मिली। दूसरा अपने क़र्ज़ छोड़कर मारा। 
मेरे दोनों डैडी इरादे के पक्के ,चमत्कारी और प्रभावशाली थे। दोनों ने मुझे सलाह दी,परन्तु उनकी सलाह एक सी नहीं थी। दोनों ने शिक्षा पर बहुत जोर देते थे,परन्तु उनके द्वारा सुझाये गए पढ़ाई के विषय अलग अलग थे। 

अगर मेरे पास केवल एक ही डैडी होते ,तो मै या तो उनकी सलाह मान लेता या फिर उसे ठुकरा देता। चूँकि सलाह देने वाले दो थे ,इसलिए मेरे पास दो विरोधाभासी विचार होते थे। (एक Rich Dad  का और दूसरा Poor Dad  का )

Rich Dad or Poor Dad Difference: Robert t Kiyosaki-

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किसी भी एक विचार को सीधे सीधे मान लेने या ना मानने के बजाय मै उनकी सलाहों पर काफी सोचा करता था ,उनकी तुलना करता था और फिर खुद के लिए फैसले लिया करता था। 

समस्या यह थी  Rich Dad अभी Rich नहीं थे और Poor Dad अभी Poor नहीं थे। दोनों ही अपने करियर शुरू कर रहे थे और दोनों ही दौलत तथा परिवार के लिए मेहनत कर रहे थे। पैसों के बारे में दोनों के विचार और नजरिया अलग थे। उदाहरण के लिए एक डैडी कहते थे ,"पैसे का मोह ही सभी बुराईयों का जड़ है "।जबकि दूसरे डैडी कहा करते थे ,"पैसे की कमी ही सभी बुराईयों की जड़ है "।

जब मै छोटा था ,तो मुझे दोनों Daddies की अलग अलग सलाहों से दिक्क्त होती थी। एक अच्छा बच्चा  होने के नाते मैं दोनों की बातें सुनना चाहता था। परेशानी यह थी कि दोनों एक सी बातें नहीं कहते थे। उनके विचारों में ज़मीन आसमान का फर्क था ,खासकर पैसे के मामले में। मै काफी लम्बे समय तक यह सोचा करता कि उनमें से किसने क्या कहा ,क्यों कहा और उसका परिणाम क्या होगा। 

मेरा बहुत सा समय सोच विचार में ही गुजर जाता था। मैं खुद से बार बार इस तरह के सवाल पूछा करता ,"उसने ऐसा क्यों कहा ?"और फिर दूसरे डैडी की कही बातों के बारे में भी इसी तरह के सवाल पूछता। काश मै यह बोल सकता ,हाँ वे  बिलकुल सही हैं। मै उनकी बातों से  पूरी तरह सहमत हूँ। या यह कहकर मै सीधे उनकी बात ठुकरा सकता ,"बुड्ढे को यह नहीं पता कि वह क्या कह रहा है। " चूँकि दोनों ही मुझे प्यारे थे। इसलिए मुझे खुद के लिए सोचने पर मजबूर होना पड़ा। इस तरह सोचना मेरी आदत बन गयी जो आगे चलकर मेरे लिए बहुत फायदेमंद साबित हुयी। अगर मै एक तरह से ही सोच पाता तो यह मेरे लिए इतना फायदेमंद नहीं होता। 
धन -दौलत का विषय स्कूल में नहीं ,बल्कि घर पर पढ़ाया जाता है। शायद इस लिए Rich लोग और ज्यादा Rich होते जाते हैं ,जबकि Poor और ज्यादा Poor होते जाते हैं और मध्य वर्ग क़र्ज़ में डूबा रहता है। हममें से ज्यादातर लोग पैसे के बारे अपने माता - पिता से सीखते हैं। कोई गरीब पिता अपने बच्चे को पैसे के बारे में क्या सीखा सकता है। वह सिर्फ इतना ही कह सकता है ,"स्कूल जाओ और मेहनत से पढ़ो। " हो सकता है कि वह बच्चा अच्छे नंबरों से कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ले। फिर भी पैसे के मामले में उसकी मानसिकता और उसके सोचने का ढंग एक गरीब आदमी जैसा ही बना रहेगा। यह सब उसने तब सीखा था जब वह छोटा बच्चा था। 
धन का विषय स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता। स्कूल में शैक्षणिक और व्यावसायिक निपुणता पर जोड़ दिया जाता है, न की धन संबंधी निपुणता पर। इससे यह साफ़ हो जाता  है कि जिन स्मार्ट बैंकर्स ,डॉक्टर्स और अकॉउन्टेंट्स के स्कूल में अच्छे नंबर आते हैं वे ज़िंदगी भर पैसे के लिए संघर्ष क्यों करते हैं। हमारे देश पर जो भरी क़र्ज़ लड़ा हुआ है वह काफी हद तक उन उच्च शिक्षित राजनेताओं और सरकारी अधिकारिओं के कारन है ो आर्थिक नीतियां बनाते हैं और मजे की बात यह है कि वे धन के बारे में बहुत कम जानते हैं। 

मै यानिकि Robert t Kiyosaki अक्सर नयी सदी में आने वाली समस्याओं के बारे में सोचता हूँ। तब क्या होगा जब हमारे पास ऐसे क्रोरो लोग होंगे जिन्हें आर्थिक और चिकित्सकीय मदद की जरूरत होंगी। धन सम्बन्धी मदद के लिए या तो वे अपने परिवारों पर या फिर सर्कार पर निर्भर होंगे। क्या होगा जब मेडिकेयर और सोशल सिक्योरिटी के पास का पैसा खत्म हो जायेगा ?किस तरह कोई देश तरक्की कर पायेगा अगर पैसे के बारे में पढ़ाई की ज़िम्मेदारी माता - पिता के ऊपर छोड़ दी जाएगी -जिनमे से ज्यादातर गरीब हैं या गरीब होंगे ?

चूँकि मेरे पास दो प्रभावशाली डैडी थे ,इसलिए मैंने दोनों से ही सीखा। मुझे दोनों की सलाह पर सोचना पड़ता था। इस तरह से सोचते सोचते मैंने यह भी जान लिया कि किसी के विचार उसकी ज़िंदगी पर कितना जबरदस्त 
प्रभाव डाल  सकते हैं। उदहारण के तौर  पर ,एक Dad को यह कहने की आदत थी ,"मै इसे नहीं खरीद सकता। "दूसरे डैडी इन शब्दों के इस्तेमाल से चिढ़ते  थे। वे जोर देकर कहा करते थे कि मुझे इसके बजाय यह कहना चाहिए ,"मै इसे कैसे खरीद सकता हूँ ?"पहला वाक्य नकारात्मक  है और दूसरा प्रशनवाचक। एक में बात ख़त्म हो जाती है और दूसरे में आप सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मेरे जल्द ही Rich बनने वाले Dad ने मुझे समझाया कि जब हम कहते हैं ,"मै इसे नहीं खरीद सकता "तो  हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता  है। इसके बजाय जब हम यह सवाल पूछते  हैं ,"मै इसे कैसे खरीद  सकता हूँ ?"तो हमारा दिमाग काम करने लगता है। उनका यह मतलब नहीं था कि आपका जिस चीज़ पर दिल आ जाए उसे खरीद ही लें। वे लगभग दीवानगी के हद तक अपने दिमाग की कसरत करवाना चाहते थे क्यूंकि उनके ख्याल से दिमाग दुनिया का सबसे ताकतवर कंप्यूटर है। "मेरा दिमाग रोज तेज होता जाता है क्यूंकि मै इसकी कसरत करता रहता हूँ। यह जितना तेज़ होता जाता है ,मै इसकी मदद से उतना ही ज्यादा पैसा कमा सकता हूँ। " उनका मानना था कि 'मै इसे नहीं खरीद सकता 'कहना दिमागी आलस की पहचान है। 

हालाँकि दोनों ही डैडी अपने काम में कड़ी मेहनत  करते थे ,परन्तु मैंने देखा कि पैसे के मामले में एक डैडी की आदत यह थी कि वे अपने दिमाग को सुला देते थे पर दूसरे डैडी अपने दिमाग को लगातार कसरत करवाते रहते थे। इसका दीर्घकालीन परिणाम यह हुआ कि एक डैडी आर्थिक रूप से बहुत अमीर होते चले गए जबकि दूसरे डैडी लगातार कमजोर होते चले गए। इसे इस तरह से समझे कि एक व्यक्ति हर रोज कसरत करने के लिए जिम जाता है ,जबकि दूसरा व्यक्ति अपने सोफे पर बैठकर टीवी देखता रहता है। शरीर की सही कसरत से आप ज्यादा तंदुरुस्त हो सकते हैं और दिमाग की सही कसरत से आप ज्यादा Rich हो सकते हैं। आलस्य से स्वास्थ्य और धन दोनों का नुक्सान होता है। 
रिच डैड पुअर डैड हिंदी में Rich Dad Poor Dad In Hindi: Robert T Kiyosaki : Hindi Noval

मेरे दोनों डैडी की विचारधारा में ज़मीन आसमान का अंतर था। एक डैडी की सोच थी कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए ताकि बेचारे गरीबों को ज्यादा फयदा मिल सके। जबकि दूसरे डैडी कहते थे ," टैक्स उन लोगों को सजा देता है जो उत्पादन करते हैं और उन लोगों को इनाम देता है जो उत्पादन नहीं करते। "
एक डैडी सिखाते थे ,मेहनत से पढ़ो ताकि तुम्हे किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल जाए। " जबकि दूसरे डैडी की सीख यह थी ," मेहनत से पढ़ो ताकि तुम्हे किसी अच्छी कंपनी को खरीदने का मौका मिल जाए। "

एक डैडी कहते थे ,"मै इसलिए अमीर नहीं हूँ क्यूंकि मुझे बाल - बच्चों को पालना पड़ता है। " दूसरे डैडी कहते थे ,"मुझे इस लिए अमीर बनना है क्यूंकि मुझे बाल - बच्चो को पालना है। "

एक डैडी डिनर के टेबल पर पैसे और बिज़नेस के बारे में बात करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे। दूसरे डैडी भोजन करते समय पैसे की बातें करने के लिए मना करते थे। 

एक का कहना था , " जहाँ पैसे का सवाल हो ,सुरक्षित कदम उठाओ ,खतरा मत उठाओ। "दूसरे का कहना था , " खतरों का सामना करना सीखो। "

एक का मानना था , " हमारा घर ही हमारा सबसे बड़ा निवेश और हमारी सबसे बड़ी सम्पति है। " दूसरे का मानना था , " मेरा घर मेरा दायित्व है ,और अगर आपका घर आपकी नज़र में आपका सबसे बड़ा निवेश है , तो आप गलत हैं। "

दोनों ही डैडी अपना बिल समय पर चूकते हैं ,परन्तु उनमें से एक सबसे पहले अपना बिल चुकता था ,जबकि दूसरा सबसे आखिर में। 

एक Daddy का मानना था कि कंपनी या सरकार  को आपका ध्यान रखना चाहिए और आपकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। वे हमेशा तनख्वाह में बढ़ोतरी ,रिटायरमेंट योजनाओं ,मेडिकल लाभ ,बीमारी की छुट्टी ,छुट्टिओं के दिन और बाकी सुविधाओं के बारे में चिंतित रहते थे। वे अपने दो चाचाओं से प्रभावित थे जो सेना में चले गए और बीस साल के कठिन जीवन के बाद उन्होंने अपने रिटायरमेंट और जीवन भर के आराम का इंतज़ार कर लिया था। वे मेडिकल लाभ के विचार को पसंद करते थे और सेना द्वारा अपने रिटाइरेड कर्मचारिओं को दी जा रही सुविधाओं की भी तारीफ करते थे। उन्हें विश्वविद्यालय का टेनॉर सिस्टम भी काफी पसंद था। कई बार नौकरी से आजीवन मिल रही सुरक्षा और नौकरी के लाभ नौकरी से ज्यादा मत्वपूर्ण हो जाते हैं। वे अक्सर ये कहते थे , " मैंने  सरकार  के लिए बहुत मेहनत से काम किया है और इसलिए बदले में मुझे ये लाभ मिलने चाहिए। "
दूसरे Dad पूरी तरह से आर्थिक स्वावलंबन में विश्वास करते थे। वे 'सुविधाभोगी 'मानसिकता के विरोधी थे। वे यह मानते थे कि इस तरह की मानसिकता लोगों को कमजोर और आर्थिक रूप से जरूरतमंद बनाती है। उनका विशवास था कि आदमी को ार्थी रूप से सक्षम होना चाहिए। 
एक डैडी कुछ डॉलर बचाने के लिए परेशान रहे। दूसरे डैडी एक के बाद एक निवेश करते रहे। 
एक Dad ने मुझे बताया कि अच्छी नौकरी तलाशने के लिए अच्छा सा बायोडाटा कैसे लिखा जाये। दूसरे ने मुझे यह सिखाया कि  कैसे एक मजबूत व्यावसायिक और वित्तय योजना लिखी जाये जिससे मै नौकरियां दे सकूँ। 
दो प्रभावशाली Daddy के साथ रहने के कारण मुझे यह विश्लेषण करने का मौका मिला कि उनके विचारों का उनके जीवन पर कितना प्रभाव हो रहा है। मैंने पाया कि दरअसल लोग अपने विचारों में ही अपने जीवन को दिशा  देते हैं। 
उदाहरण के तौर पर मेरे Poor Dad हमेशा कहा करते थे , " मैं कभी अमीर बन नहीं पाउँगा। " और उनकी यह भविष्वाणी सही साबित हुयी। दूसरी तरफ ,मेरे Rich Daddy  हमेशा खुद को अमीर समझते थे। वे इस तरह की बातें करते थे , " मै अमीर हूँ और अमीर लोग ऐसा नहीं करते। " एक बड़े आर्थिक झटके के बाद जब वे दिवालिएपन की कगार पर थे ,तब भी वे खुद को अमीर आदमी ही कहते रहे। वे अपने समर्थन में यह कहते थे , "गरीब होने और पैसा न होने में फर्क होता है। पैसा पास में न होना अस्थायी होता है ,जबकि गरीबी स्थाई होता है। "

मेरे Poor Dad यह भी कहते थे , " मेरी पैसे में कोई रूचि नहीं है। " या "पैसा मत्वपूर्ण नहीं है। "मेरे Rich Dad हमेशा कहते थे ,"पैसे में बहुत ताक़त है। "
हो सकता है हमारे विचारों की ताक़त  को   कभी  मापा न जा सके ,या फिर उन्हें पूरी तरह से समझा न जा सके। फिर भी बचपन में ही मै यह समझ गया था कि हमें अपने विचारों पर ध्यान देना चाहिए और अपनी अभिव्यक्ति पर भी। मैंने देखा कि मेरे Poor Dad इस लिए Poor नहीं थे ,क्यूंकि वे कम कमाते थे ,बल्कि इसलिए Poor थे क्यूंकि उनके विचार  और काम Poors जैसे थे। दो डैडी होने के कारण बचपन से ही मै इस बारे में सावधान हो चला था कि मै किस तरह की विचारधारा अपनाऊँ। मै किसकी बात मानूं - अपने Rich Dad की या अपने Poor Dad की ?

हालाँकि दोनों ही शिक्षा पर ज्ञान को मत्वपूर्ण मानते थे ,परन्तु क्या सीखा जाए इस बारे में दोनों की रे अलग अलग थी। एक चाहते थे कि मै पढ़ाई में कड़ी मेहनत करूँ ,डिग्री लूँ और पैसे कमाने के लिए अच्छी सी नौकरी ढूंढ लूँ। वे चाहते थे कि मै एक पेशेवर अधिकारी ,वकील या अकाउंटेंट बन जाऊ या ऍम बी ऐ कर लूँ। दूसरे डैडी मुझे प्रोत्साहित करते थे कि मैं अमीर बनने का रहस्य सिख लूँ। यह समझ लूँ कि पैसा काम कैसे करता है और यह जान लूँ कि इससे अपने लिए काम कैसे लिया जाता है। "मैं पैसे के लिए काम नहीं करता !"इन शब्दों को वे बार बार दोहराया करते थे ,"पैसे मेरे लिए काम करता है। "
9 वर्ष की उम्र में मैंने यह फैसला किया कि पैसे के बारे में मैं अपने अमीर Dad की बात सुनूंगा और उनसे सीखूंगा। यह फैसला करने का मतलब था अपने Poor डैडी की बातों पर ध्यान नहीं देना ,हालाँकि उनके पास कॉलेज की बहुत सी डिग्रीयां थी जो मेरे Rich डैडी के पास नहीं थी। 

तो आज मैं Rich Dad Poor Dad के इस भाग को यही पर खत्म करता हूँ। अगले भाग में आप सभी Robert t Kiyosaki के शब्दों में Robert Frost की कविता ," The Road Not taken " को पढ़ेंगे और इसके अर्थ पढ़ेंगे। तब तक लिए अलविदा। उम्मीद करता हूँ की आप सभी को यह भाग पसंद आएगा। अगर पसंद आये तो शेयर जरूर करें। 
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                                  धन्यवाद। 





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